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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?

उत्तर -

मध्ययुगीन काव्य के लगभग सभी महान कवियों की तरह महात्मा सूरदास का जीवन वृत्तान्त भी विवादित है। अब तक उनकी जीवनी के बारे में कुछ ही बातें निश्चय की भाषा में कही जा सकती हैं। सूरदास के जावन वृत्त के संबंध में प्राप्त सामग्री को दो भागों में बाँटा जा सकता है -

(1) अन्तः साक्ष्य
(2) बहिर्साक्ष्य।

अन्तः साक्ष्य - यद्यपि सूरदास ने अपने ग्रन्थों में अपने बारे में कुछ भी नहीं लिखा है, फिर भी कहीं-कहीं उनके जीवन-वृत्त के संबंध में कुछ संकेत अवश्य प्राप्त हो जाते हैं।

बहिर्साक्ष्य - बहिर्साक्ष्य से तात्पर्य उन पुस्तकों, लेखों आदि से है जो सूरदास के समकालीन संतों द्वारा अथवा ऐतिहासिक पुस्तकों द्वारा सूरदास के जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में जानकारी देते हैं।

नाम - हिन्दी साहित्य के लम्बे इतिहास काल में सूरदास नाम के कई कवि हो गये हैं। इनमें सूरदास मदनमोहन, सूरदास बिल्व मंगल तथा अष्टछापी सूरदास विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त भी सूरदास नाम के अनेक अन्य कवियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। किन्तु नवीन अनुसंधानों से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि 'सूरसागर' के प्रणेता यही अष्टछापी सूरदास हैं। सूरजदास, सूरश्याम तथा सूरज चन्द आदि उपनाम इनके ही थे।

जन्मतिथि - इनकी जन्मतिथि के सम्बन्ध में आलोचकों में मतैक्य नहीं है। आधुनिक खोजों से सूरदास की जन्मतिथि बैसाख शुक्ल पंचमी सं0 1535 वि0 मान्य हो गयी है।

(क) सूरदास के गुरु आचार्य बल्लभ जी के वंशज भट्ट जी महाराज ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है।

"प्रगटे भक्त सिरोमणि राय।
माधव शुक्ला पंचमी, ऊपर छह अधिक सुखदाय।'

(ख) "सूर-सूरावली" के गुरु परसाद होत यह दरसन सरसठ बरस प्रवीन' वाले पद के आधार पर भी सूरदास का जन्म सं0 1535 ही ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय की सेवा प्रणाली के इतिहास की संगति से 'सूरसारावली' का रचनाकाल सं0 1602 स्पष्ट होता है।

(ग) बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यतानुसार सूरदास आचार्य बल्लभ से आयु में दस दिन छोटे थे। बल्लभ जी का जन्म सं0 1535 की बैसाख कृष्ण दशमी दिन रविवार मान्य है। इसलिए सूरदास की जन्मतिथि बैसाख शुक्ल पंचमी दिन मंगलवार सं0 1535 ही सिद्ध होती है। डॉ. दीनदयाल गुप्त इस तिथि को स्वीकारते हैं।

जन्म-स्थान- बल्लभ सम्प्रदाय की गवाही पर यह कहा जा सकता है कि सूरदास जी का जन्म दिल्ली से 4 कोस की दूरी पर स्थित 'सीही' ग्राम में एक सास्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 'सो सूरदास जी दिल्ली के पास चारि कोस दुरे में एक सीही ग्राम है, जहाँ परीक्षित के बेटा जनमेजय ने सर्पयज्ञ किया है -

सो तो ग्राम में एक सास्वत ब्राह्मण के यहाँ प्रकटे
इस सम्बन्ध में प्राणनाथ का दोहा भी उद्धृत किया जा सकता है - 
श्री बल्लभ प्रभु लाडिले, सीही पर जलजात।
सारसुती दुख तरु सुफल, सूर भगत विख्यात।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा डॉ. श्यामसुन्दर दास ने उनका जन्म स्थान रुनकता को माना है। इसका कारण शायद सूरदास का गऊघाट पर रहना है।

'साहित्य लहरी' के वंश परिचय वाले पद में सूरदास के पिता का निवासस्थान गोपाचल बताया गया है। डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने इसे ग्वालियर का प्राचीन नाम माना है। इसी को सूरदास की जन्मभूमि माना जाता है।

जाति - सूरदास की जाति के सम्बन्ध में भी मतभेद हैं। प्राचीन प्रमाण इन्हें सास्वत ब्राह्मण मानता है। आचार्य बल्लभ के पौत्र गोस्वामी यदुनाथ तथा 'भाव प्रकाश' के टीकाकार श्री हरिराय ने सूरदास को सास्वत ब्राह्मण ही माना है।

दीक्षा - सूरदास ने बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी यह निर्विवाद सत्य है। ब्रज यात्रा के अवसर पर आचार्य बल्लभ की सूर से भेंट हुई और दैन्य भाव के निषेध तथा लीला गान की प्रेरणा द्वारा आचार्य जी ने सूर के जीवन की दिशा बदल दी थी।

अन्धत्व - सूरदास जी अन्धे थे यह तो निर्विवाद है, किन्तु जन्मान्ध थे या बाद में अंधे हुए थे इस पर आलोचकों में मतभेद हैं। 'सूरसागर' में सूरदास जी के अंधे होने का प्रमाण मिलता है। जन्म से अन्धे होने का नहीं जैसे -

सूरदास अन्ध अपराधी, सो काहे बिसरायो।

किन्तु 'भक्त विनोद' एवं 'राम रसिकावली' में इनके जन्मान्ध होने का उल्लेख है जैसे-

भक्त विनोद - 'जन्म अन्ध मृग ज्योति विहीना।

राम रसिकावली "जनमहि ते हैं नैन विहीना।"

इसके अतिरिक्त इन्हें जन्मान्ध प्रमाणित करने वालों में श्री हरिराय, श्रीनाथ भट्ट, कवि प्राणनाथ, कवि मियाँ सिंह, आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी, डॉ. मुंशीराम शर्मा, डा0 हरवंश लाल शर्मा आदि मुख्य हैं। जनश्रुतियाँ भी उन्हें जन्मान्ध बनाती हैं।

कुछ आलोचक सूर को जन्मान्ध इसलिए नहीं मानते क्योंकि उनके वात्सल्य एवं शृंगार वर्णन की अत्यन्त सूक्ष्म एवं मनोवैज्ञानिक उक्तियाँ बिना बाह्य चक्षु के निहारे इतनी स्वाभाविक नहीं बन सकतीं।

इस तरह बहिर्साक्ष्य एवं जनश्रुतियों से प्रमाणित होता है कि सूरदास जन्मान्ध थे।

गोलोकवास- सूरदास के गोलोकवास के सम्बन्ध में भी विद्वानों में बड़ा मतभेद है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और मिश्रबन्धु ने उनकी निधन तिथि विक्रमी सं0 1620 (सन् 1563) दी है परन्तु सन् 1560 तक उनके जीवित रहने का प्रमाण मिलता है। सूरदास का गोलोकवास गोसाई विट्ठलनाथ की उपस्थिति में हुआ था। विट्टुलनाथ जी की मृत्यु सन् 1585 ई. में मानी जाती है। इसलिए सूरदास जी का निधन सन् 1580 से 1585 के बीच किसी भी तिथि को सम्भव है।

चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार सूरदास जी ने श्रीनाथजी के मंदिर से कुछ दूर 'पारसौली' नामक ग्राम में अपना शरीर त्यागा अपना अन्त समय जानकर महात्मा सूरदास पारसौली चले गये और मंदिर की ध्वाजा के सामने दण्डवत् करके लेट गये। श्रृंगार के समय जब बिट्ठलनाथ जी ने सूरदास को नहीं देखा तब उनके मन में संदेह उत्पन्न हुआ। वे अपने शिष्यों के साथ महात्मा सूरदास के निवास स्थान पारसौली गये। सूरदास जी ने स्वामी को प्रणाम किया और उनके समक्ष दो पद गाया प्रथम पद में महाप्रभु बल्लभाचार्य की वंदना थी "भरसो दृढ़ इन चरनन केरो।' दूसरे पद में राधा की सुन्दरता, विशेषकर कजरारी आंखों की चपलता का वर्णन है -  खंजन नैन रूप रस माते।

अतिसय चारु चपल अनियारे पल पिंजरा न समाते।
इसी के साथ उनके प्राण पखेरु उड़ गये।

 

सूरदास की रचनाएँ -

सूरदास की रचनाओं के विषय में आलचकों में मतभेद है। नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट, इतिहास ग्रन्थ एवं पुस्कालयों में सुरक्षित ग्रन्थों के अनुसार सूर से सम्बद्ध 25 ग्रन्थों के नाम आते हैं जो निम्नांकित हैं -

(1) सूरसागर
(2) सूर सूरावली
(3) साहित्यलहरी
(4) दश स्कन्ध भाषा
(5) भागवत् भाषा
(6) सूरसागर सार
(7) सूर रामायण
(8) भँवरगीत
(9) राधा-रस- केलि- कौतूहल
(10) मान-लीला
(11) गोवर्द्धन लीला
(12) ब्याहलो
(13) नागलीला
(14) प्राण प्यारी
(15) सूर शतक
(16) दृष्ट कूट के पद
(17) सूरसाठी
(18) सूर पचीसी
(19) सेवाफल
(20) हरिवंश टीका
(21) विनय के पद
(23) नल दमयन्ती
(23) रामजन्म
(24) एकादी माहात्म्य
(25) दानलीला।

वास्तव में सूरदास जी की रचनाओं की संख्या तीन ही हैं -

(1) सूरसागर
(2) साहित्यलहरी
(3) सूर सारावली

'सूर सारावली' एक प्रकार से 'सूरसागर का सूची पत्र है। इसमें उन्हीं विषयों का संकेत मात्र है जिनका विस्तृत विवेचन 'सूरसागर में हुआ है। 'साहित्यलहरी' एक श्रृंगारिक पुस्तक है। इसमें दृष्ट कूट शैली में नायिका भेद का वर्णन है। इसीलिए कुछ आलोचक इसे पुष्टिमार्गी सूरदास की रचना नहीं मानते।

सूरदास का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ 'सूरसागर है। आलोचकों ने इसमें केवल पांच हजार पदों को ही उनके द्वारा लिखा हुआ माना है, जबकि लोग सवा लाख पदों की संख्या बताते हैं। इस ग्रन्थ की रचना पुराण शैली में हुई है। पुराणों की तरह इसका भी विभाजन स्कन्धों में हुआ है। इसमें बारह स्कन्ध हैं। ग्यारह स्कन्धों में विनय एवं भक्ति के पद हैं। दशम स्कन्ध में कृष्णलीला विस्तार से वर्णित है। मात्रा और गुण दोनों ही दृष्टियों से सूरसागर का तीन चौथाई से अधिक भाग इसी दशम् स्कन्ध में सुरक्षित है। सूरदास का विशेष ध्यान कृष्ण की बाल लीला एवं यौवन क्रीड़ा पर ही रखा है। द्वारिका प्रवास की कथा एवं उसके बाद के वृत्तान्तों में सूर की मनोवृत्ति रमी नहीं है। कृष्ण के सौन्दर्य और माधुर्य के प्रति ही सूरदास का विशेष आग्रह रहा है। सूरदास ने कृष्ण की आलौकिकता को उनकी लौकिकता में इस तरह छिपा दिया है कि माधुर्य की अनुभूति में व्यवधान नहीं पड़ता। यद्यपि कथा की पृष्ठभूमि श्रीमद्भागवत् से ली गयी है किन्तु सूरसागर की मौलिकता में कोई संदेह नहीं है। 'भ्रमरगीत' इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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